माया की कुकीज़ और Costing की कहानी: छोटे बिज़नेस के लिए एक ज़रूरी गाइड
- omemy tutorials
- 17 जून
- 4 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 18 जून
“अच्छा प्रोडक्ट बनाना काफी नहीं है – बिज़नेस में असली कमाई समझदारी से होती है।”
🍪 कहानी की शुरुआत – माया का सपना
17 साल की माया जब अपनी दादी की पुरानी रेसिपी बुक से बनी चॉकलेट चिप कुकीज़ अपने परिवार को खिलाती है, सब वाह-वाह कर उठते हैं। उन्हीं तारीफों से माया के दिल में बिज़नेस शुरू करने का ख्याल आता है।
"₹50 में एक डिब्बा बेचूंगी," माया ने मुस्कुराते हुए कहा।"100 डिब्बे हर महीने बेचूंगी तो ₹5,000 मिलेंगे!"क्योंकि लागत तो सिर्फ ₹20 थी, यानी ₹30 का फायदा प्रति डिब्बा — कुल ₹3,000 महीना।
उसने सोचा – बिज़नेस तो बड़ा आसान है!
🧾 6 महीने बाद – कड़वी सच्चाई
100 डिब्बे बिक रहे थे हर महीने, पर बैंक अकाउंट खाली होता जा रहा था।12 घंटे की मेहनत के बावजूद, जेब में पैसा नहीं बच रहा था।
"मम्मा, मैं तो सब वैसा ही कर रही हूँ जैसा प्लान था, फिर भी मैं घाटे में कैसे हूँ?"
मम्मी प्रिया जी, जो एक अकाउंटेंट थीं, मुस्कुराईं और बोलीं, "बताओ कैसे लागत निकाली थी?"
"सिर्फ सामग्री – आटा, चीनी, मक्खन, अंडे – ₹20 प्रति डिब्बा।"
"बस यहीं गलती है बेटा," मम्मी ने कहा।"तुमने आधी तस्वीर देखी है।"

📊 बिज़नेस में सही सोच क्या है?
मम्मी ने एक सिंपल लेकिन दमदार फॉर्मूला समझाया:
❌ शुरुआती सोच:
लागत + मुनाफा = कीमत, पर इससे दिक्कत आती है क्योंकि ग्राहक कीमत तय करते हैं, आप नहीं।
✅ सही तरीका:
कीमत - लागत = मुनाफा, पर इसमें खतरा है — जैसे ही लागत बढ़ती है, मुनाफा घट जाता है।
🧠 स्मार्ट सोच (Budgeted Costing):
कीमत - मुनाफा = लागत का बजट, यानी पहले ये तय करो कि मुनाफा कितना चाहिए, फिर बाकी बजट में प्रोडक्ट बनाओ।
🧮 लागत को समझना – Direct और Indirect Costs
मम्मी ने कहा:"तुमने सिर्फ डायरेक्ट कॉस्ट देखी — यानी सामग्री।पर बाकी भी तो खर्चे होते हैं जो सीधे दिखाई नहीं देते।”
✅ डायरेक्ट कॉस्ट (प्रत्येक डिब्बे पर):
सामग्री: ₹20
🔄 इनडायरेक्ट कॉस्ट (महीने की):
गैस: ₹300
बिजली: ₹200
उपकरण टूट-फूट: ₹100
पैकेजिंग सामग्री: ₹500
इंटरनेट/फोन: ₹200
डिलीवरी खर्च: ₹400👉 कुल: ₹1,700
अब प्रति डिब्बा इनडायरेक्ट कॉस्ट = ₹1,700 ÷ 100 = ₹17
सच्ची लागत = ₹20 + ₹17 = ₹37 प्रति डिब्बा..............माया को लगा ₹30 का मुनाफा हो रहा है, असल में सिर्फ ₹13 बच रहे थे!
✨ Magic Number – तेज़ और आसान तरीका
मम्मी ने एक सिंपल फॉर्मूला बताया जो कई फूड बिज़नेस अपनाते हैं:
Magic Number = डायरेक्ट कॉस्ट × 3
माया की डायरेक्ट कॉस्ट: ₹20
Magic Number प्राइस: ₹60
मतलब ₹60 में बेचना चाहिए था, लेकिन माया ₹50 में बेच रही थी।
👉 Magic Number हर बिज़नेस के लिए अलग होता है (2x से 10x के बीच), पर इससे एक अनुमान मिलता है कि कीमत सही है या नहीं।
📉 अब कैसे बचाएं लागत? – Budgeted Costing Approach
मम्मी ने कहा: "चलो उल्टा सोचते हैं।"
मार्केट प्राइस: ₹50
मनचाहा मुनाफा: ₹25➡️ लागत बजट = ₹50 - ₹25 = ₹25 प्रति डिब्बा
पर माया की वास्तविक लागत थी ₹37 – यानी ₹12 ज़्यादा।
अब माया को न सिर्फ सभी खर्च समझने थे, बल्कि उन्हें कंट्रोल भी करना था।
🔍 Cost Object vs Cost Driver – बचत का तरीका
🔸 Cost Object: वह चीज़ जिसकी लागत निकालनी है – जैसे 1 डिब्बा कुकीज़
🔸 Cost Drivers: वह गतिविधियां जो खर्च को बढ़ाती हैं
🎯 माया ने ये Cost Drivers पहचाने:
🛠️ ड्राइवर | 🎯 Cost Object | 💸 वर्तमान लागत | ✅ समाधान | 🧾 नई लागत |
बार-बार बेकिंग | गैस + बिजली | ₹5 | हफ्ते में 2 बार बैच बनाना | ₹2.50 |
बार-बार डिलीवरी | ट्रांसपोर्ट | ₹4 | ज़ोन वाइज़ डिलीवरी | ₹2 |
सामग्री की बर्बादी | सामग्री लागत | ₹20 | बेहतर प्लानिंग | ₹18 |
पैकेजिंग वैरायटी | पैकेजिंग | ₹5 | स्टैंडर्ड पैकेजिंग | ₹3 |
उपकरण की उपयोगिता | मेंटेनेंस | ₹1 | सही मेंटेनेंस | ₹1 (कंट्रोल किया हुआ) |
नई अनुमानित लागत = ₹18 (डायरेक्ट) + ₹9.50 (इनडायरेक्ट) = ₹27.50अब भी ₹2.50 ज़्यादा।
👉 और कैसे कम करें?
थोक में सामग्री खरीदने से लागत और कम की – ₹16.50 प्रति डिब्बा➡️ अंतिम लागत: ₹25 प्रति डिब्बा — टारगेट हिट!
🧠 Transformation – माया की सोच बदली
🔄 उसने अपनाए ये बदलाव:
बैच बेकिंग: गैस खर्च ₹150 महीना
स्मार्ट डिलीवरी: ज़ोन वाइज़ ₹200 महीना
Story कार्ड और सुंदर पैकेजिंग: प्रीमियम इमेज बनाई – कीमत बढ़ा दी ₹55
इन्वेंटरी कंट्रोल: वेस्टेज घटाकर लागत ₹16.50
हर खर्च ट्रैक किया एक Costing Sheet में
📈 नया रिजल्ट:
लागत प्रकार | राशि | कंट्रोल कैसे? |
सामग्री | ₹16.50 | थोक में खरीद, वेस्टेज कम |
गैस | ₹1 | बैच बेकिंग |
बिजली | ₹1 | शेड्यूलिंग |
पैकेजिंग | ₹4 | सिंपल डिज़ाइन |
डिलीवरी | ₹2 | ज़ोन वाइज़ |
उपकरण | ₹1 | मेंटेनेंस |
कम्युनिकेशन | ₹1 | डिजिटल ऑर्डर |
कुल लागत: ₹26.50 | बिक्री मूल्य: ₹55 | मुनाफा: ₹28.50 प्रति डिब्बा
💡 माया की सीख – और आपकी भी
“कीमत - मुनाफा = लागत” – यही असली बिज़नेस फॉर्मूला है
हर खर्च मायने रखता है – चाहे डायरेक्ट हो या इनडायरेक्ट
Cost Drivers को समझो, काबू पाओ
Magic Number से फटाफट चेक करो मुनाफा
हर महीने लागत की समीक्षा ज़रूरी है
🎁 अंत में एक मीठा सबक
"बजटेड कॉस्टिंग सिर्फ नंबरों का खेल नहीं है," माया ने सोचा, जब उसने उस महीने अपनी 500वीं कुकीज़ की डिब्बी पैक की।
"ये अपने बिज़नेस को इतनी गहराई से समझने की बात है कि वो मुनाफ़े में भी रहे और टिकाऊ भी बने।"
अब माया को समझ आ गया था कि सिर्फ बढ़िया प्रोडक्ट बनाना या दिन-रात मेहनत करना ही काफी नहीं होता।असल सफलता तब मिलती है जब आप हर एक रुपये का हिसाब जानते हों और ये पक्का करते हों कि आपका बिज़नेस फॉर्मूला आपके हक़ में काम कर रहा है।
दादी की कुकीज़ की रेसिपी ने उसे एक शुरुआत दी थी, लेकिन कॉस्टिंग की समझ ने उसे एक असली बिज़नेस वुमन बना दिया था।जब माया ने अपना बढ़ता हुआ ऑर्डर बुक देखा, तो मुस्कुराई –अब उसके पास सिर्फ स्वादिष्ट कुकीज़ की रेसिपी ही नहीं थी, बल्कि एक सफल बिज़नेस की भी रेसिपी थी।
🧾 इस कहानी की सीख बिल्कुल साफ़ थी:
बिज़नेस में costing का ख्याल रखना सिर्फ एक काम नहीं है – ये उस रेखा को तय करता है जो एक शौक और एक टिकाऊ बिज़नेस के बीच होती है।हर कामयाब बिज़नेस ओनर को बजटेड कॉस्टिंग की कला आनी चाहिए,क्योंकि आख़िर में – जो बिज़नेस अपने खर्चों को नहीं समझते, वो ज्यादा दिन नहीं चलते, चाहे उनका प्रोडक्ट कितना भी अच्छा क्यों न हो।
अगर आप भी कोई छोटा बिज़नेस चला रहे हैं या शुरू करने का सोच रहे हैं, तो माया की कहानी से बहुत कुछ सीख सकते हैं।
कॉस्टिंग समझना यानी अपने बिज़नेस को जिंदा रखना।
क्या आप भी अपनी माया बनना चाहते हैं? नीचे कमेंट करें कि आपकी सबसे बड़ी Costing चुनौती क्या है – और हम मिलकर हल निकालेंगे!
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